हाइजैन का दुतियक तरंगीका सिद्धांत:-

 हाइजैन के तरंगों के संचरण के संबंध में एक सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसे तरंगों का द्वितीय तरंगीका सिद्धांत कहते हैं जिसकी प्रमुख कल्पनाएं निम्न है।


(१)जब किसी माध्यम में कोई विक्षोभ उत्पन्न होता है तो माध्यम के कण कंपन करने लगते हैं माध्यम में वह पृष्ठ जिस पर स्थित सभी कारणों की कल कंपनी सामान कला में होते हैं, तरंगाग्र कहलाते हैं।

(२)तरंगाग्र   पर स्थित माध्यम का प्रत्येक कण नवीन विक्षोभ उत्पन्न करने का केंद्र होता है।  इस नवीन विक्षोभ को दूतिय तरंगा कहते है।

(३) यदि माध्यम से मांगी है तो वित्तीय तंगी का है भी उसी वेग से गति करती है जिस बैंक से प्रारंभिक तरंगीका भी गति करती है।

(४)  किसी भी क्षण द्वितीय तरंगीकाओ पर खींचा गया उभयनिष्ठ स्पर्शी तल उस क्षण नवीन तरंगाग्र की स्थिति प्रदर्शित करता है।


चित्र:-





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